थोडुंक गुजरात विशेनुं ज्ञान



थोडुंक गुजरात विशेनुं ज्ञान ताजुं
करी लईए ...📚
📕स्थापना : 1 may 1960
📗पहेला नुं पाटनगर : अमदावाद
📘हाल नुं पाटनगर : गांधीनगर
📙राज्यगीत : जय जय गरवी गुजरात
📒राज्यभाषा : गुजराती
📕राज्यप्राणी : सिंह
📒राज्यपक्षी : सुरखाब
📔राज्यवृक्ष : आंबो
📙राज्यफूल : गलगोटो
📗राज्यनृत्य : गरबा
📕राज्यरमत : कब्बडी
📘प्रथम राज्यपाल : महेंदी नवाजगंज
📙प्रथम मुख्यमंत्री : डो जीवराज महेता
M L A सीट : 182
M P सीट : 26
📔राज्यसभा सीट :11
📒जील्ला : 33
📕जील्ला पंचायत :33
नगरपालिका : 169
📗महानगरपालिका : 8
📘तालुका : 249
📙तालुका पंचायत : 249
📒गामडा : 18192
📔ग्रामपंचायत : 13187
📕कुल वस्ती : 6,03,83 628( वर्ष 2011
मुजब )
📗पुरुष : 3,14,82,282
📘स्त्रीओ : 2,89,01,346
📙हाल ना मुख्यमंत्री : विजय रुपानी
👣👣👣👣👣👣l
गुजराती ओ नो दबदबो आखा भारत पर
● प्रधानमंत्री - गुजराती
( मोदीजी )
● बीजेपी ना राष्ट्रिय अध्यक्ष-
गुजराती ( अमित शाह )
● भारत मा सौथी धनिक जे परिवार छे ते -
गुजराती ( अंबानी )
● भारत ना चलन पर जेनो फोटो छे ते -
गुजराती ( गांधीजी )
● जेमनी दुनिया माँ सौथी मोटी
प्रतिमा बनवानी छे
ते - गुजराती
( सरदार पटेल)
अने,
तमने आवो सरस मेसेज मोकलनार
हुं पण "गुजराती"...

क्या है नवरात्रि और शस्त्र पूजन का रहस्य ?


क्या है नवरात्रि और शस्त्र पूजन का रहस्य ?
समस्त उर्जा का स्रोत्र अध्यात्मिक रूप से माने तो परम ब्रह्म परमेश्वर ,अकाल ,अजर-अमर ,अमूर्त,अविनाषी ,श्री हरि ,नारायण  और कण कण में रमा हुआ राम, नामों से विभूषित परम तत्व है। और उसी का मूर्त रूप या दृश्य प्रतिरूप यह सूर्य नारायण है। जबकि वैज्ञानिक रूप से समस्त उर्जा का स्रोत्र यह सूर्य ही है ।यहाँ तक कोई ज्यादा भेद नही है क्योंकि विज्ञान अभी तक सूर्य की उर्जा से ही परिचित हो पाया है और इसे बताने में अक्षम है कि आखिर यह सूर्य किस के प्रताप से उर्जा प्राप्त कर रहे हैं। संभव है आज नही तो कल ,कल नही तो परशो और परशो नही तो वर्षों बाद विज्ञान यह बताने में सक्षम हो जाये कि यह सूर्य देव ही किसी अन्य उच्च शक्ति के प्रताप से ही उर्जा प्राप्त किये हुए है। खैर हम आगे अपने प्रतिपाद उर्जा या शक्ति पर आते हैं। इस सूर्य देव के अन्दर तेजी से शक्ति पुंज एक दूसरे से टकराते हुए निरंतर अनंत उर्जा का निर्माण करते रहते हैं। पृथ्वी सहित सौर मंडल के समस्त गृह इसी उर्जा के प्रभाव से सूर्य के परिक्रमा करते रहते है और सूर्य की उर्जा से ही उर्जा प्राप्त करते हैं। पृथ्वी अपनी स्वयं की धुरी पर घूमती है, जिससे दिन और रात या यों कहें हर पहर और हर घड़ी का काल खंड तय होता है। हर पल स्थिति बदलती है और पिछला पल काल कलवित होता जाता है। इसीलिए इसका नाम काल पड़ा।और क्षरण के इस खंड का नाम क्षण अर्थात जो घट गया। और क्षणों से पल अर्थात पलक झपकने का काल बना ,पलों से घडी,घडी से पहर ,पहर से छाक,छाक से दिन और रात्रि बने दिन से वार और वार से सप्ताह ,सप्ताह से पक्ष,पक्ष से माह,माह से ऋतु,ऋतु से वर्ष और वर्ष से युग ।इस प्रकार काल की गणना होती है। अब जिस प्रकार पृथ्वी द्वारा अपनी धुरी पर घूमते समय जो सतह सूर्य की और उन्मुख होती है, तब दो संध्या काल बनते है! यहाँ संध्या ,संधि शब्द से बना है। प्रातःकाल और संध्या काल ।इन दोनों ही काल खंड ने एक  विशेष परिवर्तन होता है, पृथ्वी की उस सतह के पर्यावरण में नकरात्मक उर्जा का प्रभाव पड़ता है। ठीक इसी प्रकार 6 ऋतुओं के संधि काल में और भी अधिक् परिवर्तन होता है प्रकृति के पर्यावरण में । और एक ऋतु से दूसरी ऋतुओं में प्रवेश काल को संक्रमण काल कहा जाता  जिनमे 4 ऋतुयें तो मात्र एक रात्रि में परिवर्तित हो जाती है ।चूँकि इन ऋतुओं के परिवर्तिन काल में नकारात्मक शक्तियों का दुष्प्रभाव अधिक होता है।जिस प्रकार प्रकृति में शक्ति का या उर्जा का स्रोत्र सूर्य है, उसी प्रकार हमारे शरीर में उर्जा का स्रोत्र प्राण है और वो भी उर्जा सूर्य से ही प्राप्त करता है। और इस कारण यदि हम इस संक्रमण काल रात्रि में अपने प्राण बल को बलवान बनाते हुए जागृत रहकर अपने इष्ट के ध्यान में रहकर उनसे नजदीकी यानि उपवास( उसकी निकटता) में रहकर संक्रमण काल रात्रि का सामना करे तो नकरात्मक उर्जा,एवं भावनाए ,जिन्हें आसुरी शक्ति भी कहते का दुष्प्रभाव हम पर नहीं पड़ता। यह 4 महाकाल रात्रि है श्री कृष्ण जन्माष्ठमी,दीपावली,महाशिवरात्रि एवं होली।इन 4 महाकाल रात्रियों के अलावा 2 बसंत से ग्रीष्म ऋतू और वर्षा से सर्द ऋतू ऐसी है कि इसमें पर्यावरण के मौषम में आमूल चूल परिवर्तन होता है। इसलिए इनका संक्रमण काल 9 रात्रि है जिन्हें हम नवरात्रि नाम से जानते है ।इन 9 रात्रि में सो जाने से नकरात्मक उर्जा, उन आसुरी शक्तियों का प्रभाव हमारे प्राण बल को कमजोर करता है इसिलए इन दोनों संक्रमण काल की 9 रात्रियों में हम जप और  उपवास(अपने इष्ट की निकटता) करते है, और दिन में थोडा विश्राम करते है। सर्दी वाले नवरात्रि की समाप्ति के बाद आसुरी शक्तियों और नकरात्मक उर्जा के प्रतीक रावण पर अपने इष्ट और सकरात्मक शक्ति के प्रतीक श्री राम की विजय के रूप में विजयदशमी मनाते है। जबकि चैत्र माह वाली संक्रमण काल वाली नवरात्रि की समाप्ति पर श्री राम का अपने हृदय रूपी संसार में जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।वर्षा से सर्द ऋतु में प्रवेश के संक्रमण काल वाली कालरात्रि में शक्ति और उर्जा की प्रतीक मातृ शक्ति दुर्गा की साधना की जाती है। इस साधना में लगातार मन्त्र जप किया जाता है ताकि उर्जा का संचय हमारे प्राण में हो सके। एकम से लेकर पंचमी तक जिस मन्त्र का जप किया जाता है उसे षष्टि क़े दिन प्रातःकाल  बलि यानि त्याग किया जाता है ।यह बलि अपने इष्ट,गुरु यया मात्र शक्ति दुर्गा को(क्योंकि इन तीनों ही  शक्तियों से प्राण बल बलवान होताहै) इसी जप किये गये मन्त्र को भेट की प्रक्रिया का नाम बलि है। इसके बाद षष्टी, सप्तमी और अष्टमी को जो जप किया जाता है उसे नवमी को अपने गुरु,मात्रशक्ति दुर्गा यअ इष्ट के प्रति बलिदान किया जाता है। चूँकि किसी भी शक्ति के प्रदर्शन एवं शक्ति या उर्जा का प्रतीक शस्त्र एवं अ