पहले विश्व युद्ध के दौरान अविभाजित भारत


पहले विश्व युद्ध के दौरान अवि

भाजित भारत (पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश) के क़रीब दस लाख से ज़्यादा सैनिकों ने हिस्सा लिया था.
इस युद्ध के दौरान ब्रितानी सेना की ओर से लड़ते हुए अविभाजित भारत के करीब 70 हज़ार सैनिकों की मृत्यु हो गई थी. इतिहासकारों के मुताबिक इनमें से ज़्यादातर लोगों की शहादत को भुला दिया गया.
ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्य नवनीत ढोलकिया ने इस मामले में एक अभियान चलाने का फ़ैसला लिया है. इस अभियान का उद्देश्य ब्रितानी स्कूलों में इतिहास की किताब में इन सैनिकों के योगदान को शामिल कराना है.
नवनीत ढोलकिया ने कहा, “जब मैं युवाओं से मिलता हूं तो मुझे लगता है कि इतिहास से उन्हें दूसरे समुदायों के योगदान के बारे में जानकारी नहीं मिलती. जब मैं कोई सवाल पूछता तो इस मामले में एक गैप देखने को मिलता था.”
उन्होंने ये भी बताया कि भारतीय मूल के ब्रितानियों को अपने देश के लोगों के योगदान के बारे में पता होना चाहिए. नवनीत ढोलकिया ने बताया, “लोगों के लिए ये समझना महत्वपूर्ण है कि वे किस देश से आए हैं, किसी विविधता से आए हैं और सभी अवरोधों के बावजूद उनके समुदाय ने कितनी प्रगति की है.”
ब्रिटेन में 15 से 16 साल के बच्चों के लिए होने वाली परीक्षा जीसीएसई के टेक्स्ट बुक में केवल एक फोटो कैप्शन में पहले विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों के योगदान का जिक्र है.
किंग्स कॉलेज, लंदन के डॉ. शांतानु दास ने दोनों विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों के योगदान पर कई किताबें लिखी हैं. उनका ये मानना है कि भारत में भी इन सैनिकों के योगदान को याद नहीं रखा गया है.
उन्होंने बताया, “दरअसल मुख्य कहानी में यूरोपीय लोगों का जिक्र ज़्यादा है क्योंकि जब आप किसी चीज़ को याद करते हैं कि सबसे पहले अपने परिवार से शुरुआत करते हैं और गरीब भारतीय, जो शिक्षित नहीं थे, उनकी उपेक्षा हुई है.”
इस अभियान के बारे में जानकारी लेने के लिए हमने शिक्षा विभाग से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. ढोलकिया ने ये अभियान तब शुरू किया है जब पिछले दिनों में लंदन से सटे शहर ब्राइटन में भारतीय सैनिकों के योगदान पर जश्न मनाने वाले समारोह शुरू हुआ था.
इस समारोह के आर्टिस्टिक डायरेक्टर अजय छाबरा ने कहा, “इन सैनिकों का कोई नाम नहीं हुआ. वे हमारे लैंडस्कैप का हिस्सा बनकर रह गए हैं. उन यादों को जीवित रखने क लिए हमें उन्हें आवाज़ देनी होगी. हम उसे आंदोलन का रूप देंगे. हम उसे जीवंत बनाएंगे.”
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारतीय सैनिकों के योगदान को नृत्य, कार्यशाला और थिएटर के माध्यम से याद करना है.